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ग्रन्थि / हरिनारायण व्यास
Kavita Kosh से
लिख दिया तुम्हारा भाग्य समय ने
उसी पुरानी कलम पुराने शब्द-अर्थ से।
उसी पुराने हास-रुदन, जीवन-बंधन में,
उन्हीं पुराने केयूरों में
बँधा हुआ है नया स्वस्थ मन
नयी उमंगें, नव आशाएँ
नये स्नेह, उल्लास सृष्टि के संवेदन के।
उन्हीं जीर्ण-जर्जर वस्त्रों में नये आप को ढाँक न पाती।
तुम अभिनव विंशति शताब्दि की
जागृत नारी
जिस की साड़ी के अंचल में
बँधा हुआ है वही पुराना पाप-पंक
अविजेय पुरुष का।
नव जीवन के भिनसारे में
इस मैली सज्जा में तुमको
हुई नयी अनुभूति जगत की।
बड़े वेग से आज समय की नदी गिर रही
नव जीवन की आग तिर रही।
तुम इस में हो स्वयं समर्पित बही जा रही।
मैं नवीन आलोक बँधा हूँ तुम से
उसी पुरानी क्षुद्र गाँठ में
जीवन का सन्देश, भार बन इस यात्रा का।