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ग्रीष्म / मुइसेर येनिया
Kavita Kosh से
ताप जो फूट रहा है धरती से
घुल-मिल गया है उस ताप से
जो हृदय से निकल रहा है
चलो, जरा तफ़री करते हैं तुम्हारे ज़ेहन में
चलते हैं
तुम्हारी आँखों में
जो बनी हैं मेरे लिए
शब्द .....
ऐसे बच्चे हैं
जो बातचीत नहीं कर सकते
तुम्हारी आँखें.....
दरख़्त हैं कटे हुए
जो गिर रहे हैं
मेरे ऊपर ।