जखनहि सुनलहुँ रंगभूमि मे लक्ष्य भेद कय देलनि
सुन्दरि द्रौपदि प्राप्तिक संगहि वीरबली अपनौलनि
महा महा विजयी पांचालक कयल एकट्ठा जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥21॥
जखनहि सुनलहुँ शकुनि द्यूवश हारित भेला रण मे
सुस्थिर मति गंभीर युधिष्ठिर त्यागल सबटा क्षण मे
अनुजबली माता सब तैयो संग न छोड़ल जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥22॥
जखनहि सुनलहुँ शतशत ऋषिगण बसथि युधिष्ठिर साथे
आनो आन महात्मा द्विजगण भिक्षा माँगथि ताते
ऋषिदल वेष्टित पाण्डवगणकेँ, सुनलहुँ संजय जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥23॥
जखनहि सुनलहुँ व्याध रूपकेँ युद्धहिं तोषित कयलन्हि
स्वयं त्रिलोचन त्रिभुवन दाता भय प्रसन्न वर देलन्हि
महाअस्त्र पुनि पाशुपतक सन पौलन्हि अर्जुन जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥24॥
जखनहि सुनलहुँ वनवासहुँ मे ऋषिदल श्रेष्ठ पधारथि
निवसथि बैसखि उठथि तनिक संग मित्र भाव दर्शावथि
सेवक सहित सकल संबंधी छथि पाण्डवहित जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥25॥
जखनहि सुनलहुँ नृपति युधिष्ठिर तीर्थक यात्रा कयलन्हि
लोमश ऋषिसंग हुनकहि मुखसँ खुशी खुशी ई सुनलन्हि
इष्टसिद्धि प्राप्त छथि अर्जुन स्वर्ग जायकें जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥26॥
जखनहि सुनलहुँ असुर विनाशक क्रीटमुकुटयुत अर्जुन
स्वर्ग जाय बधि असुर सबहुँकें अयला सकल मुदितमन
इन्द्रलोक सँ पूर्णकाम भय अयला अर्जुन जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥27॥
जखनहि सुनलहुँ ताहि देश सँ जहाँ मनुष्यक गति नहि
भीमसहित आनो भ्रातासब अयला घूमि सयत्नहिं
धनकुबेर सँ मैत्री कयकेँ छथि सब हर्षित जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥28॥
जखनहि सुनलहुँ वन निष्कासित पाण्डव अवध बितावथि
कर्णादिक कौरवगण मिलिकेँ मोद प्रमोद मनावथि
पाण्डव दुखी सुखी कौरवगण सिंहवथि तनिका जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥29॥
जखनहि सुनलहुँ यक्ष आबिकेँ कयलक सबकेँ बंदी
बिनु आज्ञा पोखरि फुलवारी दूरिक कारण जल्दी
दुखी देखि कौरव केँ, पाण्डव जीति छोड़ाओल जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥30॥