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घनघोर घटाएँ आती हैं / पवन कुमार मिश्र

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अनमोल पलों को खोकर हम
कुछ नश्वर चीज़ें पाते है
और उस पर मान जताते है
यह अभिमान क्षणिक है, बंधु !
समय का कौन ठिकाना है
जो मंगल गीत बना उसको
निश्चित मातम बन जाना है ।

घनघोर घटाएँ आती हैं
पल भर में प्रलय मचाती हैं
लेकिन अगले ही क्षण उनको
अपना अस्तित्व मिटाना है ।

जैसे सागर की लहरें
तट पर आती मिट जाती हैं
इस धरती पर सबको वैसे
आना फिर मिट जाना है ।

जो आज हमारा अपना है
कल और किसी का होगा वह
सारे जग की यही रीत है
उस पर क्या पछताना है ।

जग ठगता है हर पल पग-पग
क्यों रोते हो ऐसा कह कर
देकर धोखा अपने तन को
एक दिन तुमको भी जाना है....