घरेलू गाय / सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
घरेलू गाय होती है
बस गाय बनी रहने के लिए
चिड़िया होती हैं
चिड़िया होने के अलावा उड़ने के लिए
घरेलू गाय के आगे होते हैं बड़े-बड़े नाद
रखे होते हैं उनमें पर्याप्त दाना-पानी
बैठे बिठाए चल रही होती है ज़िंदगानी
खूँटे से बंधी रस्सियाँ करा देती हैं
छोटी सी जगह में गोल पृथ्वी की सैर
कभी-कभी यूँ ही मचल जाती हैं
और टूट जाती हैं रस्सियाँ
मालिक बांध देता है तब
पहले से और मजबूत रस्सियाँ
गाय गीली आँखों से ताकती है बाहर की दुनिया
पल भर पहले उसकी देह पर बैठी छोटी चिड़िया
चहारदीवारी पर फुदक रही होती है
और वहाँ से उड़कर
पास के अमरूद की ऊँची फुनगी पर बैठी
इतराती गाना गाती है
फिर जाने की तैयारी में पंख फैलाती है
उड़ते-उड़ते हो जाती है आँखों से ओझल
पर गूँज रहा होता है कानों में
अब भी चिड़िया का मधुर गाना
गाय नही जानती है चिड़िया की भाषा
पर लगता है सालों से यही आज़ादी का तराना
जिन्हें गाने के लिए अक्सर
रस्सियों को तोड़ना ही होता है
बड़े नादों की परवाह किए बिना!