भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर और वन और मन / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
हवा
मेरे घर का चक्कर लगाकर
अभी वन में चली जाएगी
भेजेगी मन तक
बाँस के वन में गुँजाकर
बाँसुरी की आवाज़
एक हो जाएँगे
इस तरह
घर और वन और मन
हवा का आना
हवा का जाना
गूँजना बंसी का स्वर !