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घर में आने से पहले / सुभाष नीरव
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तुमने
मेरी यादों की धरती पर
अपना घर बना रखा है
घर कि
जिसके द्वार
खुले रहते हैं सदैव।
जब जी चाहता है
तुम आ जाते हो इस घर में
जब जी चाहता है
चले जाते हो इससे बाहर।
तुम्हारे आने का
न कोई समय तय है
न जाने का।
तुम्हारे आते ही
जीवंत हो उठता है यह घर
तुम्हारे चले जाने से
पसर जाता है इसमें
मरघटों-सा सन्नाटा।
तुम्हें हाथ पकड़ कर
रोक लेने की
चाहत भी तो पूरी नहीं होती
क्योंकि
न जाने कहाँ छोड़ आते हो
तुम अपनी देह
इस घर में आने से पहले।