घर से भागी बेटियाँ / निधि अग्रवाल
घर से भागी हुई बेटियाँ घर से बाद में भागती हैं,
उससे बहुत पहले वे भाग चुकी होती हैं
अपने आप से।
अपने आप से भागने की प्रक्रिया
अनचीन्ही रह जाती है।
किन्तु दूसरा भागना होता है अप्रत्याशित,
चकित उठ बैठता है घर- बार,
पड़ोसी,रिश्तेदार और साथ ही पूरा शहर।
घर से भागी हुई लड़की,
पहले घर से निराश होती है,
और बाद में निराश होती है
अपने द्वारा ढूँढ़ी आस से।
उसके पास नहीं होता कोई कंधा
सिर रख अपना दुःख कह लेने को।
घर से भागी लड़की
हर मोड़ पर तलाशती है नेह,
लेकिन छलता है उसे
हर रास्ता
और छोड़ आता है
कभी किसी विषाद की नदी के किनारे
या झोंक देता है आत्मग्लानि के दावानल में।
घर से भागी लड़की के
शव की शिनाख़्त नहीं होती।
घर वाले कहते हैं-
वह मर चुकी थी हमारे लिए बहुत पहले
मरे हुए की मौत बार-बार नहीं होती।
लेकिन मरने से पहले
हर पल में सौ-सौ बार मरती है
घर से भागी लड़की!
घर से भागी लड़की की आँखें,
मरने के बाद भी खुली रहती हैं
किसी अपने के इंतज़ार में।
अगली बार जो भागे कोई लड़की
उसे बेटी ही बने रहने देना,
रहने को एक घर देना,
रोने को कंधा देना,
वापसी का मार्ग देना,
और जहाँ भी रहे रहे सानन्द
बिटिया को शुभाशीष देना!