भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घाटी की लय / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
झर-झर
झरता है निर्झर
जिस की गूँज वह पट है
जिस पर घाटी की लय बुनी है
मुझ को छाये है घनी छाँह जो
इसी लय की एक मुरकी है।
(1976)