घुमन्तू चिड़िया से / मूसा जलील / भारत यायावर
जैसे गुबरैले
गोबर के टीले में छेद करके रहते हैं
वैसे ही हम रह रहे हैं
उदास बैरकों का सिलसिला
कँटीले तारों से घिरा
और रेत है चारों ओर !
लगता है एक अनजाना सूर्य
पहाड़ी से ऊपर उठता है !
आश्चर्य में पड़ जाता हूं
वह इतना भयानक क्यों दीखता है !
यह गर्म नहीं
इसकी किरणें हमें चूमती नहीं
जीवनरहित
हल्का पीला
खीज पैदा करता है !
यह क़ैदख़ाना दूर तक फैला है, विस्तृत है
आगे जंगल है
सुबह-सुबह
जहाँ से घास काटने की आवाज़ें आती हैं
और कोई दूसरी आवाज़ सुनाई नहीं पड़ती ।
सूनसान अकेलापन
और ऐसे नीरस क़ैदख़ाने में
एक घुमन्तू चिड़िया
अचानक कल चली आई मेरे लिए गाने,
ओ प्यारी !
तुमने ग़लत बाड़ा चुना
यहाँ आना-जाना और गाना
ख़तरनाक है !
तुमने यहाँ ख़ून बहते देखा होगा
अपने दिल में दर्द महसूस किया होगा
यह मृत्युदण्ड पाए क़ैदियों का कैम्प है ।
आंसुओं से भरी
निराशा-हताशा की घाटी है !
ओ घुमन्तू चिड़िया !
स्वागत है तुम्हारा !
बोलो प्यारी, बोलो !
जब तुम नील गगन में उड़ान भरोगी
तो क्या मेरी मातृभूमि की ओर भी जाओगी ?
मेरी अपराजित आत्मा से निकला
यह अन्तिम अनुनय-विनय है
जो युगों-युगों तक
आशा से परिपूर्ण
जीवित रहेगा
ओ उड़ान भरने वाले मेरे मित्र !
जल्दी जाओ
मेरे अपने लोगों के पास
और इस देशप्रेमी कवि का संदेश देना !
मेरे लोग तुरन्त ही जान लेंगे
तुम्हारी सुरीली आवाज़
और दुर्लभ आकृति वाले पँखों के कारण
और कहेंगे —
"दूर से जो यह सुन्दर पँखों वाली गायिका आई है
कवि की ख़बर लाई है
भयँकर शत्रुओं ने उसे बेड़ियों से जकड़ रखा है
किन्तु वे उसके मनोबल को तोड़ नहीं पाएँगे
यद्यपि वह क़ैद है
कवि के सन्देश को
कोई शक्ति क़ैद नहीं कर सकती
कोई शक्ति मार नहीं सकती !
"इस क़ैदी कवि के
स्वतन्त्रधर्मी सन्देश को
ओ प्यारे पखेरू !
मेरे लोगों के बीच पहुँचा दो
ताकि मेरे गीत
मेरे अपनों के बीच ज़िन्दा रहें !
(रूसी तातार कवि मूसा जलील ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाज़ी सेना की क़ैद में यह कविता लिखी।)
अँग्रेज़ी से भावान्तर : भारत यायावर