भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घूँघट का पट खोल रे / भजन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घूँघट का पट खोल रे,
तोहे पिया मिलेंगे।

घट घट रमता राम रमैया,
कटुक बचन मत बोल रे॥

रंगमहल में दीप बरत है,
आसन से मत डोल रे॥

कहत कबीर सुनो भाई साधों,
अनहद बाजत ढोल रे॥