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घोड़े / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
(अनुराधा ऋषि की पेंटिंग देखकर)
साँझ का झुटपुटा है
और घोड़े हैं परस्पर सटे हुए
एज-दूजे की देह से थकान मिटाते हुए
रगड़ते हुए गर्दन से गर्दन
धूसर धरती को देते हुए नया बिम्ब
न जाने कितने योजन
दूर से चलकर आए हैं घोड़े
थकान के बावजूद व्यग्र
उतने ही खड़े-खड़े निकाल लें नींद
घोड़ों में छिपी है आदिम इच्छा
थकान उतरने की देर
कि यही घोड़े
जाकर खींच लाएँगे धरती पर
सूर्य का रथ