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चंदा मामा (बाल कविता) / प्रदीप प्रभात
Kavita Kosh से
चंदा मामा आरे आबोॅ,
नदिया किनारे आबोॅ।
मिश्री दूध लेने आबोॅ,
नुनु खैतोॅ प्याली मेॅ।
चंदा मामा आबोॅ नी,
साथें मिली गाबोॅ नी।
तारा लैकेॅ आबोॅ नी,
लोरी हमरा सुनावोॅ नी।
चंदा मामा दूर के,
पुओॅ पकाबोॅ गुड़ कॅे।
नुनु बुलतोॅ ताय-ताय,
रोटी भुंजा खाय-खाय।
नुनु छेकोॅ बाबु छेकोॅ,
छेकोॅ चेंगना रे।
पैला मेॅ खजुर देवोॅ,
खैतोॅ ऐंगना रे।
मौंसी लानतौं झिलिया रे,
खैय्यै बैठी मचिया रे।
काचर-कुचर कौआ खाय,
घी के लड्डु नुनुआ खाय।
चंदा मामा आरे आबोॅ,
नदिया किनारे आबोॅ।
सोना के कटोरी मेॅ,
दूध भात लेनेॅ आबोॅ।