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चंद्रकूट वर्षा / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
जब दृष्टि स्वयम् घुल गई दृश्य के साथ-साथ
तब जो भी था सब भर आया
भर आईं आँखें
कण्ठ
हृदय
सातों समुद्र
सब भर आये
आँसू बरसे
अमृत बरसा
बरसे तरकश के तीर
क्षीर-अमृत-हालाहल-कालकूट
गिरि चंद्रकूट की तरह
चमकते थे बादल
उन झड़ियों की झकझोर
यहाँ तक आती थी उन दिनों
यहाँ तक...