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चरखी / कन्हैयालाल मत्त
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इधर पार्क के कोने में है —
चरखी चक्करदार।
चलो, सवारी लेंगे उसकी,
करो न सोच-विचार।
किन्तु सम्हलकर चढ़ना होगा,
है कुछ ऐसा ढंग।
लकड़ी के इस घोड़े की है,
पीठ ज़रा कुछ तंग।
साज नहीं रखता यह घोड़ा,
चलता बिना लगाम।
चढ़ना और उतरना हो, तो —
लो रकाब से काम।
निर्भय होकर मज़बूती से,
पकड़े रहना तार।
कहीं न गिर जाना ज़मीन पर,
समझे, मियाँ सवार !