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चलें वहाँ / कविता कानन / रंजना वर्मा
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चलें वहाँ
जहाँ बह रहा हो
त्रिविध समीरण
खुशबू के संग ।
भँवरे कलियों को
चूम कर
कर रहे हों विकसित ।
मासूम तितलियाँ
तलाश रही हों
आसरा
फूलों की गोद में ।
जहाँ नीला आकाश
झुक कर
ले रहा हो चुम्बन
वसुधा के
सरस अधरों का ।
जहाँ
पर्वत के पीछे से
शाम उतरती हो
और उस की
सहज श्यामता
जैसे मेरे
दिल के करीब से
हो कर
गुजरती हो ।
हर पगडंडी
जो जाती हो
उम्र के पड़ाव तक
ठहरती हो यहीं ।