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चले भी गये तुम / सुनील कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
चले भी गये
कब आये थे तुम!
बिना खनके, बिना झनके
रोशनी की किरण की तरह
और चले भी गये आकर तुम,
अचानक रोशनी की ही तरह
सुना था मैंने
दस्तक देते हो तुम
किसी आगंतुक की तरह।
बिखेरते हो तुम
गंध अपनी
मंद मंद, मधुर मधुर,
मकरंद की तरह।
फैल जाते हो तुम ही तो
नीम में भी बन मिठास!
भूल गये क्या?
स्नेहिल स्पर्श
की प्यास बुझी नहीं।
प्राणों की भी अभी
आस बुझी नहीं
और तुम बन बैरागी,
चले गये क्या?
प्रतीक्षा रत है आम्रकुंज
आम्रकुंज में, आम्रपाली की तरह
सुनो बसंत, आओ तो
नहीं आना तुम, बुद्ध की तरह
वरन आना बसंत तुम
बसंत की तरह॥