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चलो गुनगुनाएँ ग़ज़ल के बहाने / डी .एम. मिश्र
Kavita Kosh से
चलो गुनगुनाएं ग़ज़ल के बहाने
ज़रा मुस्कराएं ग़ज़ल के बहाने
मज़ा तो तभी जब तुम्हारे दिये ग़म
तुम्हीं को सुनाएं ग़ज़ल के बहाने
पुराने से दिल भर गया है अगर तो
नये गुल खिलाएं ग़ज़ल के बहाने
बहुत दूर से ख़ूब होती हैं बातें
कभी पास आएं ग़ज़ल के बहाने
हमारे भले दिल मिलें ना मिलें ,पर
नज़र तो मिलाएं ग़ज़ल के बहाने
ज़माना हक़ीक़त से महरूम क्यों हो
उसे सच बताएं ग़ज़ल के बहाने
रहें ना रहें हम यही एक ख़्वाहिश
तुम्हें याद आएं ग़ज़ल के बहाने