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चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दें / हरकीरत हीर
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					चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दें
जहां से ज़ुलम औ' सितम हम मिटा दें
अहम की दिवारें नहीं मीत अच्छी 
बनाई हमीं ने हमीं अब गिरा दें
दिलों में अदावत जो पाली है हम ने 
गले मिल चलो अब उसे हम भुला दें
न हिन्दू , मुस्लिम, न सिख, ना इसाई  
नया धर्म अपना मुहब्बत चला दें
अमीरी गरीबी में दुनियां बँटी है
ये कैसी लकीरें इन्हें हम मिटा दें
जहाँ खिल न पाये कभी फूल कोई
बहारों को अब उस चमन का पता दें
चलें डाल कर हम तो' बाहों में' बाहें
सभी खार नफ़रत के' चुन-चुन हटा दें
खुले नफरतों के ठिकाने जहाँ पर
वहाँ न्याय की बस्तियाँ हम बना दें
मुहब्बत ख़ुदा की नियामत अगर है 
शमा प्रेम की 'हीर' दिल में जला दें
 
	
	

