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चलो प्रेम / नीरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती
Kavita Kosh से
चलो जाएँ, किसी दूसरी इच्छा के भीतर जाएँ, प्रेम
चलो जाएँ, देख आएँ नदी का दूसरा पार
यहाँ तो एक-सी हँसी, एक-से आँसू हैं
हैं एक-सी रातें, दिन और प्यार ...
उस पार दूसरे उपहार है या नहीं
चलो जाएँ देख आएँ, प्रेम।
चलो चलें किसी दूसरे उद्यान के पास, प्रेम।
चलो चलकर कुछ दूसरे सुख, दूसरी पीड़ा की ज्वाला लेकर
चलो माला गूँथे किसी दूसरी छत पर
चलो किसी दूसरे पानी पर देख आएँ
किसी दूसरे आकाश की परछाई
चलो चलें, प्रेम।
मूल बांग्ला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी