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चलो मंजिल की ओर / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

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निकलेगा सूरज की आएगा भोर
चलो मंज़िल की ओर चलो मंज़िल की ओर!

ओ राही, सिपाही तू हिम्मत न छोड़,
बनानी है राह ज़रा पत्थर भी तोड़,

अब लहर भी उठेगी-उठेगी हिलोर
चलो मंज़िल की ओर चलो मंज़िल की ओर!

चाहे मंज़िल की राहों में काँटे मिलें,
तुम्हें चलना है धरती की कलियाँ खिलें,

उठा ले कलम, उठ लगा दे न जोर
चलो मंज़िल की ओर चलो मंज़िल की ओर!

राह बनती रहे तुम जला दो मशाल,
तेरे बढ़ने के आगे न कोई सवाल!

बनो तुम हींं मिसाल नई दुनिया की ओर
चलो मंज़िल की ओर चलो मंज़िल की ओर!