चल उठो घायल बाला! / आरती 'लोकेश'
भीष्म पितामह सा हृदय, बिंधा अगणित बार है,
अर्जुन सम प्रिय शूरवीर, किया स्वजन पर वार है।
न व्यथा हटे पीड़ा घटे, शर ही जीवन आधार है,
अवलम्ब ही शूल बने, छलनी बदन तार-तार है।
शांत चित्त अपमानित, मौन कर रहा चीत्कार है,
आहत उर को और अब, आघात नहीं स्वीकार है।
घावों से रिसता लहू नहीं, अवनि पर कर्ज़ उधार है,
धरती पर टपकी हर बूँद, पर अब होना विचार है।
चलो उठो घायल बाला, यह समय की पुकार है,
किसके कर्मों का प्रायश्चित, करता तेरा उद्गार है।
दोषी पापी का गंतव्य, निश्चित मृत्यु का द्वार है,
मौन अब भी न चीखे तो, मानवता पर प्रहार है।
न डरो कि शत्रु की सेना, महाकार अपरम्पार है,
रणभेरी नाद गूँज रहा, निशाने पर व्याभिचार है।
सत्य का शस्त्र उठा हाथ, संग तेरे भू परिवार है,
कुकर्मी की है पराजय, अब तेरी जयजयकार है।