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चल मुसाफिर / रोहित रूसिया
Kavita Kosh से
चल मुसाफिर
राह ये
तेरे लिए है
बात करती है
अभी परछाइयों से
धूल पथ की
कह रही बस
चल पड़ो अब
छोड़ चिंता
पथ-अपथ की
राहतों की
चाह कब
तेरे लिए है
आँधियाँ, दुश्वारियाँ
नाराज़ सी
उल्टी हवाएँ
वक्त से
लड़ती हुयी
भिड़ती हुयी
संभावनाएँ
कुछ यही
हमराह बस
तेरे लिए है
चल मुसाफिर
राह ये
तेरे लिए है