भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाँवर गीत / 1 / भील

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

राजा नी बेटी नहीं नवे, नहीं नवे।
वाण्या नो बेटो, उरो नवे, परो नवे।
एक फेरो फिर जी बनी, चार को बनो छे।
बनी पयणाय जाजी ने, पछी आवती रहजी।

- फेरे के समय वधू को कहा गया है कि- वधू, राजा की लड़की है वह झुकेगी नहीं। बनिया का बेटा इधर झुकता है उधर झुकता है। बनी को फेरे के लिए कहा है। एक फेरा फिर, बना पराया है। दुल्हन अड़ रही है। सहेलियाँ कह रही हैं- ब्याह कर ले फिर वापस पीहर आ जाना।