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चाँहत करन प्रसिद्ध इत / शृंगार-लतिका / द्विज
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दोहा
(कवि की स्वयं उक्ति)
चाँहत करन प्रसिद्ध इत, उत डराइ रहि जाउ ।
उर-अंतर ता-छन परयौ, ऐसौ संभ्रम भाउ ॥५८॥