भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चांद : दो चितराम / नीरज दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चांद : आरसी

म्हैं देखूंला-
थनै आखी रात
अर थूं जोवैला
आखी रात म्हनै

आव, आभै मांय ढूंढां-
आरसी।


चांद : चौकीदार

जागै है-
पखवाड़ै-पखवाड़ै चांद
अर गैळीजै पछै-
कोर-कोर
पखवाड़ै-पखवाड़ै।