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चांद तारों से न्यारी / उर्मिल सत्यभूषण

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हमको प्राणों से प्यारी यह धरती है
चांद तारों से न्यारी यह धरती है
खुदा ने तो खुद झोलियाँ इसकी भर दीं
कुदरत ने भी नेहमतें भेंट कर दीं
धानी सी साड़ी में लिपटी यह नारी
स्वर्ग ने उतारी यह धरती है
यहाँ ताप, ठंडक, हवा, पानी मिलता
तभी जिं़दगी का पौधा पनपता
वातावरण की छतरी के नीचे
रवि से न हारी यह धरती है
कभी न थकी है सतत चल रही है
जिसे पालती है, वही छल रही है
खुद अपनी ही संतान, करती है अपमान
अपनों से हारी यह धरती है।
धरती की दौलत को किसने उजाड़ा
वातावरण के कम्बल को फाड़ा
रूप बिगाड़ा चेहरा उघाड़ा
अपनों की मारी यह धरती है।
फटे जा रहे हैं ओज़ोन के छाते
सूरज की गर्मी से अब न बचाते
अन्दर से जलती, बाहर से तपती
बलखती बेचारी यह धरती है
दूषित हवाएँ विषैली फिजायें
घुटती है सांसें यह किसको बतायें
अरे लाडलो! होश में अब तो आओ
माता तुम्हारी यह धरती है।