उन्होंने
बार-बार
हमें
चांद पर
ले जाने के
स्वपन दिखाए
परन्तु
एक बार भी
चांद नहीं दिखाया ।
उस समय तक
हम
जिसको उन्होंने
चांद कहा
उसको ही
चांद कहते रहे ।
जिस दिन
हमारे ऊपर
चांद निकला
उस दिन
घर से बाहर
निकलने की
सख्त मनाही थी
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"