भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चानणों / श्याम महर्षि
Kavita Kosh से
ऊगतै सूरज रो उजास
नूंतै म्हनै
इण सूं घणौ अळगौ नीं हैं
हियै रो चानणौं,
चानणै रा मग्गर
जोंवतो-जोंवतो
व्हीर हुयग्यो उण रै लारै
इण खातर कै
कदास करूं गिंगरथ उण सूं,
चानणौ
बावड़‘र कदैई
नीं जोयो म्हनैं
पण
चानणै रो मुहण्डो
जोवणै खातर
बगतो रैया हूं उणरै लारै
लगोलग,
पांवडा-दर-पांवडा
बगतां थकां
ओज्यूं तांई दिखै फकत
उण रा मग्गर
ठा नीं कद दिखैलो उण रो
ऊजळो मुहण्डो,
चानणै लारै बगणौ
अर चानणै रो
मुंहडो जौवणों
म्हरौ धरम है।