चारू कात बसैए विषधर
पोरे-पोर डसल छी
एहि बिखाह जंगल मे हमही
चानन गाछ बनल छी ।
खेत पथार धान उपटा कें
माहुर लोक रोपै अछि
रस्ता पैरा सभठाँ अगबे
रेङनी काँट फुलै अछि
किछु कमलक खातिर, रवि हम
भरि छाती पाँक धसल छी ।
ओलती कें चिनबार न सोहबइ
दूनू मे न पटै अछि
फूटल बासन रेसनिहार
क्यो नहि एहि गाम भेटै अछि
हम तँ युगक भाल सँ
सिनुरक ठोपे जकाँ पोछल छी ।
नव जातिक होलिका हसय
केवल प्रह्लाद जरै अछि
सूर्यक एहि सतलखा महल मे
बादुर आब रहै अछि
हमर मोल द्वापरे कहत
बसुली हम झोल भरल छी ।