भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चान्द का बेटा / पाब्लो नेरूदा / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यहाँ हर चीज़ जीवित है
कुछ न कुछ करती हुई
अपने को परिपूर्ण बनाती हुई
मेरा कोई भी ख़याल किए बगैर ।
लेकिन सौ बरस पहले जब पटरियाँ बिछाई गईं
मैंने सर्दी के मारे कभी अपने दाँत नहीं किटकिटाए
कॉतिन<ref>नेरूदा के वतन चिली के दक्षिणी भाग का एक अँचल ।</ref> के आसमान के नीचे
बारिश में भीगते मेरे हृदय ने ज़रा भी साहस नहीं किया
जो कुछ भी अपने को अस्तित्व में लाने के लिए
ज़ोर लगा रहा था
उसकी राह खोलने में मदद करने का ।
मैंने एक उँगली भी नहीं हिलाई
ब्रह्माण्ड तक फैले हुए जन-जीवन के विस्तार में
जिसे मेरे दोस्त खींच कर ले गए थे
शानदार अलदबरान<ref>लाल रँग का एक तारा, जो वृषभ की आँख बनाता है ।</ref> की ओर ।

स्वार्थी जीवधारियों के बीच
जो सिर्फ लालच से देखते और छिपकर सुनते
और फालतू घूमते हैं
मैं इतनी तरह के अपमान सहता रहा जिनकी
गिनती करना कठिन है
सिर्फ़ इसलिए कि मेरी कविता सस्ती होकर
एक रिरियाहट बनने से बची रहे ।

अब मैं सीख गया हूँ दुःख को ऊर्जा में बदलना
अपनी शक्ति को खर्च करना कागज़ पर
धूल पर, सड़क के पत्थर पर ।
इतने समय तक
किसी चट्टान को तोड़े या किसी तख़्ते को चीरे बग़ैर
मैंने निभा लिया,
और अब लगता है यह दुनिया बिलकुल भी मेरी नहीं थी :
यह सँगतराशों और बढ़इयों की है
जिन्होंने छतों की शहतीरें उठाईं : और अगर वह गारा
जिसने ढाँचों को उठाया और टिकाए रखा
मेरी बजाए किन्हीं और हाथों ने डाला था
तो मुझे इसका अधिकार नहीं
कि अपने अस्तित्व की घोषणा करूँ : ‘मैं चान्द का बेटा था !’

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल

शब्दार्थ
<references/>