भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाय में लिपटी शाम / संगीता शर्मा अधिकारी
Kavita Kosh से
शाम की चाय
क्या होती है
कैसी होती है
पता नहीं
मैंने तो कभी पी नहीं
मैंने तो बस किया है इंतजार
हर शाम उसका
एक जाती शाम से
लौट आती शाम तक
इंतजार उसके आने का
बाहों में भर कर घंटों बतियाने का
चाय की चुस्की संग रूठने-मनाने का
छत की बगिया से एक गुलाब
मेरी जुल्फों में महकाने का
ढेर सारी अच्छी-बुरी
नई-पुरानी, बीती-बासी यादों से
शामों को महकाने का…
तुम ही बताओ
जब तुम आओगे
तब लाओगे
मेरी एक शाम चाय में लिपटी हुई सी।