चार चौक सोलह / नितेश व्यास
उन्होंने न जाने
कितनी योनियाँ पार कर
पायी थी मनुष्य देह
पर उन्हें क्या पता था कि एक योनि से दूसरी योनि में पहुँचने के कालान्तर से भी कई अधिक समय लगता है
किसी गरीब को अपने घर पहुँचने में
और जरूरी नहीं कि वह पहुँच ही जाएगा
उस घर, जहाँ पहुँचने के सपनें
उसने पहले ही भेज दिये हैं
कितनी ही सूखी आंखों में
वो भौतिक सीमाओं पर
दृष्ट शत्रुओं से लड़ रहे सैनिक नहीं है
वे अदृष्ट दुर्भाग्य की सीमाओं पर खड़े जूंझ रहे हैं
खुद अपने से
वे खड़े हैं दो राज्यों को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर
जिसे बनाया था उनके ही पुरखों ने कि तलवे सेकने वाले ड़ामर पर हमारी औलादें सेकेगी अपनी भूख
उनको समझाओ कि
राजमार्ग दो शब्दों से मिलकर बना शब्द है
राज का मार्ग अलग होता है
प्रजा का अलग
तुम ढूंढ़ते रह जाओगे
राज को मार्गभर
और राज वातानुकुलित कक्ष से जारी कर रहा होगा आंकड़े कि आज रेल की पटरी पर चार-चार रोटियों का तकिया लगाकर सोलह मजदूर
सो गये चैन की नींद।