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चार शेर / शमशेर बहादुर सिंह

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देख की अपनी बेक़सी किसलिए जी में हो खफ़ीफ़

मूनिस हमनवाँ मेरे बेहरो-क़वाफ़ियो-रदीफ़


आज वो हो चुका जो था आपका आशिक़ नज़ार

दौरे-जहाँ से उठ गया हुस्न का परतव लतीफ़


देखना दर पे कौन अभी देता हुआ सदा गया

और काफ़िले-दर्द पर आपका दौलते-शरीफ़


भूल गए हम मगर क़ौलो-क़रार याद है

आह ज़माना भी है कुछ आप ही नहीं सितम ज़रीफ़

(1955 में रचित)