भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिंताओं का बोझ जिन्दगी / अवनीश सिंह चौहान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सत्ता पर काबिज
होने को
कट-मर जाते दल
आज सियासत-
सौदेबाजी
जनता में हलचल

हवा चुनावी,
आश्वासन के
लड्डू दिखलाए
खलनायक भी नायक बनकर
संसद पर छाए

कैसे झूठ खुले-
अँजुरी में
भरते गंगा-जल

लाद दिये
पिछले वादों पर
और नये कुछ वादे
चिंताओं का बोझ जिन्दगी
कोइ कब तक लादे

जिये-मरे
ये काम न आये,
बेमतलब, बेहल

वही चुनावी
मुद्दा लेकर
वे फिर घर आए
मन को छूते बदलावों के
सपने दिखलाए

हैं प्रपंच, ये पंच
स्वयं के
कैसे-कैसे छल