भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिंता / दुष्यन्त जोशी
Kavita Kosh से
कुण गावै
ब्यांव रा गीत
मन री प्रीत
गीतेरण कुण जोवै
नीं कोई लोवै-तोवै
लोक संस्कृति री
कुण करै चिंत्या
सै' सूकरया है
आप-आपरी चिंत्या में
लोक संस्कृति री चिंत्या
किण नै खासी
आ
किण री पांती में आसी
ठाह कोनी।