भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिड़िया (दो) / शरद बिलौरे
Kavita Kosh से
खिड़की तक आती है
मुझे देखती है, उड़ जाती है
चिड़िया मुझ से क्यों डरती है।
चिड़िया की आँखें हैं
आँखों में कोटर है
कोटर में अतीत है
और अतीत में हस्तिनापुर है
द्रोणाचार्य हैं, पाण्डव हैं
और भी बहुत कुछ है,
शायद महाभारत और गीता भी।
तब चिड़िया की आँखों में
पाण्डव भी थे अर्जुन भी था
सिर्फ़ नहीं था
कि अर्जुन की आँखों में खाली
चिड़िया की आँखें हैं !
अपनी आँखें छिद जाने का
सिर्फ़ उसे अहसास नहीं था
कुछ बच्चे थे
एक चिड़ा था
एक घोंसला
और पेट में
दोनों की ख़ुशबू पाने की बड़ी चाह थी
तो फिर क्या मैं भी अर्जुन हूँ
मेरे भीतर कहीं
हस्तिनापुर उग आया है
चिड़िया ने कैसे जाना
चिड़िया मुझ से क्यों डरती है।