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चिड़िया और स्त्री / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
सुबह-शाम
मेरे घर में
गूँज उठती है
एक सुखद चहचहाहट
मेरे घर में
चिड़िया ने
अपना घर-परिवार
बसाया है
मैं नहीं जानती
उसका चिड़ा भी
साथ रहता हैं या नहीं
कितने बच्चे हैं उसके
इतनी ठंड में
मुँह अंधेरे ही
क्यों निकल जाती है
मुझे जगाकर
कहाँ रहती है दिन-भर
क्या करती है
नहीं जानती
मैं तो इसी में खुश हूँ
कोई तो रहता है
मेरे अकेलेपन के साथ
कभी-कभी डर लगता है
कहीं चिड़िया सुबह निकले
फिर लौटे ही न
कहीं और न बना ले
घर।