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चिर सुरत कर केलि श्रमश्लथ... / कालिदास

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लो प्रिये हेमन्त आया!

चिर सुरत कर केलि श्रमश्लथ

शिथिल सालस गात अपने

स्फुरित जंघा औ" स्तनों से

पुलक मुखरित हर्ष अपने

तैल अंगों पर लगातीं

स्निग्ध करतीं हेमकाया,
लो प्रिये हेमन्त आया!