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चीख़ और रोटी के बीच/ केशव
Kavita Kosh से
मेरे अंदर
उस वक्त एक चीख
फड़फड़ा रही थी
और तुम
तवे पर जलती रोटी को
बचाने की कोशिश में थीं
उस पल
हमारे बीच
समय
पुल नहीं
एक खाई था
जिसके दोनों और खड़े हम
सिर्फ देख रहे थे
कैसे पी जाती है
उफनती नदी
किनारों को
ज़र्रा-ज़र्रा
और अपने भीतर
उस खोखली मुस्कराहट को
फेंकना चाहते थे रस्सियोँ की तरह
एक दूसरे की ओर
जोड़ना चाहते थे
दो सिरों को
अपनी-अपनी खपच्चियों से
बताओ
यह छल
किसने किससे किया
तवे पर जलती रोटी
और चीख के बीच
किसने किसको कितना जिया?