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चूक / आभा पूर्वे
Kavita Kosh से
बारिश की
एक बूंद के इंतजार में
नख से शिख तक
शृंगार कर
सो गई मैं
अपने द्वार पर
नींद खुली थी
तब
जब
सावन
बीत गया।