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चेतना अब जगी है सुलाना नहीं / उर्मिल सत्यभूषण

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चेतना अब जगी है सुलाना नहीं
जागरण है हमेशा भुलाना नहीं

जो मिला है हमें, हम क्यों न कहें
उससे बढ़कर तो कोई खज़ाना नहीं

रूठना औ मनाना बहुत हो गया
रूठ जाने का कोई बहाना नहीं

अब मिले हो तो जाने न देंगे तुम्हें
तुम हमारे हो गर छोड़ जाना नहीं

जब मिटेंगी दीवारें ये मैं तू की सब
तब नई भीत उर्मिल उठाना नहीं।