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चेतौ / मीठेश निर्मोही
Kavita Kosh से
थे म्हनै घड़ी-घड़ी
भरमावणी चावौ
म्हनै साबासी
देवता।
म्हारा मो‘र
थपावता।
चींदी-चींदी
मुळक
बिखेर!
पीढी धर पीढी
थे म्हनै
ठगता आया हौ
म्हनै अबै जावतां
आ ठा पड़ी।