चैती पछिया / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा
चैता अवधूत ई पछिया गरज रहल
जने तने दौड़ रहल छौंड़ा ई अनकहल
खेत-खेत गेहूँ के सोना छितराल है
सहजन के छीमी सब अभिए गदराल है
पटक रहल पौधाके, झटक रहल पेड़ पात
दिनभर तो चलल चलल भोर भिनसार रात
धूरीके सगरो अबीर उड़ल भारी है
देखलांे बजावैत सब पेड़ करतारी है
आम गोटियाल लसियाल भरियाल हे
नदिया पतरकी के पानी चुनियाल हे
साँढ़ निहर दौड़ल धकियावे हे लोग के
सुनलो भगावे हे कतना ई रोग के
सुता रहल गेंहुमके, झुका रहल सहजन के
धक्का दे चलल बड़ी जोर से ई तनके
करको उत्पात ई झार रहल फूल पात
पछिया बटमार चलल दिन करे झात्-झात्
चैत के पछिया ई बड़का रंगदार है
चलैत रहल दिनभर ई बड़का दमदार है
सेमल के झरल फूल नदिया के सुखल कूल
सोभ रहल हरियर सन नदियाके सब दुकूल
धरती के छूए ले पेड़ धड़फड़ाल हे
कुइयाँ सब सुखल जल गेल सब पताल हे
तार और खजूर सब डोल रहल
पछिया सबके पकड़को हे झोल रहल
दिशा दिशा मोड़ रहल, दौनी के तोड़ रहल
खेत सब कोड़ रहल, जगह सब मोड़ रहल
घर से निकले में सबके बरज रहल
चैता अवधूत ई पछिया गरज रहल।