भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चोरी गेलोॅ की कभी ऐतौं बौआबोॅ कतनौ / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
चोरी गेलोॅ की कभी ऐतौं बौआबोॅ कतनौ
चोरोॅ के बस्ती में तों शोर मचाबोॅ कतनौ
हमरा लागै छै तोरोॅ माथोॅ फिरी गेलोॅ छौं
बाघ हँसतै केना केॅ? तोहें हँसाबोॅ कतनौ
अबकि हम्में जों तोरोॅ डेढी सें घुरी गेलियौ
ऐबौं की लै लेॅ कभी, तोहीं नी आबोॅ कतनौ
ई तेॅ अपने बिखोॅ सें मुर्दा बनी गेलोॅ छै
है की जीतौं? तोहें मंत्रोॅ सें जिलाबोॅ कतनौ
भैंस तेॅ भैंस छेकै बैठी केॅ पगुरैतै ही
झूमेॅ पारेॅ नै केन्हौं बीन बजाबोॅ कतनौ
साँपें छोड़लेॅ छै कहाँ लोगोॅ केॅ डँसबोॅ केन्हौं
प्रेम सें मौनी में रक्खोॅ या नचाबोॅ कतनौ
बूढ़ोॅ सुग्गौं की कहीं केकरो पोस मानै छै
सोन-पिंजरा में सीताराम पढ़ाबोॅ कतनौ
आदमी रीझै धरम-जात सें, गीतौ सें नै
तोहें गजले कैन्हें नी झूमीकेॅ गाबोॅ कतनौ
-13.6.91