चौथोॅ सर्ग / रोमपाद / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
भाव विभोर छै राजा दशरथ
कौशल्या सें बोलै,
चाहै छै- की-की नैं बोलौं
आपनोॅ मन केॅ खोलै।
”की नै जानै छौ तों रानी
रोमपाद केॅ परिचय?
सुनोॅ, सुनैय्यौं तोरा सबटा
रहौं नै कोनो संशय।“
अवधराज के राजा दशरथ
रानी सें बोलै छै,
रोमपाद के वंश-कथा केॅ
बंधलोॅ जे, खोलै छै।
अंगदेश के भूपति बलि के
चार पूत में जेठोॅ
अंगे छेलै बलि रं बरियोॅ
दूधोॅ केरोॅ मेठोॅ।
उषिज आंगिरस अंगऋषि के
पोता दीर्घतमा सें,
बालक अंग धरा पर ऐलै
जेना पुण्य जमा सें।
बलि के साथें माय सदैष्णा
हर्षित भाव विभोर,
घोर अमावश में चाँदोॅ रोॅ
फैलै धवल इंजोर।
बलिये रं राजा अंगेशो
जेकरे सुत दधिवाहन,
दधिवाहन रोॅ बेटा दिविरथ
क्रम सें लै सिंहासन।
दिविरथ के ही पुत्र धर्मरथ
अद्भुत धर्मी छेलै,
हुनकोॅ राजोॅ में कांही नै
कहूँ विधर्मी छेलै।
प्रजा हितोॅ लेॅ व्याकुल-व्याकुल
जिनगी भर ही रहलै,
यश हेनोॅ की हेन्हैं मिलै छै
बिना कष्ट के सहलै।
धर्मरथोॅ के समय अवध में
रघु के राज विराजै,
महाराज रघु के हौ ख्याति
बादल नाँखि बाजै।
महाराज रघु के ही साथी
धर्मरथो; यश होने
बरसै सौंसे आर्य-खंड में
यश के सोने-सोने।
धर्मरथो के लाल चित्ररथ
होने धर्मी भेलै,
अंगदेश में पुण्य-शरत, रितु
ऐंगना-ऐंगना खेलै।
वहा चित्ररथे के सुत छेलै
अमल सत्यरथ नरपति,
पुण्य कर्म के बरसै हरदम
चारो दिश ही संपत्ति।
सत्यरथोॅ के साथी हमरोॅ
पिताश्री अज अहरह,
अंग-अवध के धरती-नभ ठो
सतकर्मोॅ सें महमह।
पिता तुल्य ही सत्यरथोॅ के
रोमपाद सुत छेकै,
हमरा प्राणो सें प्याराछै
हमरौ होनै देखै।
हमरा छै विश्वास केन्हौ नै
हमरोॅ बात उठैतै,
देखतै जैन्हैं हमरा ऐतें
हमरा गला लगैतै।
हमरोॅ दुख जानी लेला पर
चुप केन्हौ की रहतै,
सब कुछ सहेॅ सकै छै लेकिन
हमरोॅ दुख नै सहतै।
हमरा छै विश्वास जरूरे
शांता अवध उतरती,
ऋषिकुमार भी ओकरे संग ही
पुलकित होतै धरती।
हे रानी कौशल्या, हमरी
व्याकुल नै होना छै,
मान-मनौवल आ अर्चन सें
ऋषिकुमार लाना छै।
आखिर तेॅ दामाद छिकै नी
हुनकै नै, हमरो भी,
जब तांय छै विश्वास अडिग ई
धैर्य टुटै नै छै आभी।
हे रानी तोंय नै जानै छोॅ
रोमपाद के बल केॅ, यश केॅ,
छै गुमान जेकरा पर भारी
तीर-धनुष आरो तरकश केॅ।
बलशाली तेॅ एतनै ही छै
बांधी लै दसियो ठो हाथी,
हे रानी, जाना छै हमरा
रोमपाद लुग, अइये राती।