भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छंद 18 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज
Kavita Kosh से
भुजंगप्रयात
रमैं पच्छिनी सौं सबै पच्छ जोरैं। बिहंगावली आपनौं भाव भोरैं॥
जयंती-जपा जाति के बृच्छ नाना। धरैं हैं चहूँ कोद सौं मोद-बाना॥
भावार्थ: अपने भाव को भूले हुए मस्त सब पक्षी, पंख से पंख सटाए दंपती-विहार में प्रवृत्त हैं। योंही चारों ओर जयंती-जपा जाति के अनेक वृक्ष प्रसन्न वेष धारण किए दीख पड़ते हैं।