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छंद 50 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

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सोरठा
(कवि की प्रस्ताविक उक्ति अपने प्रति)

कौंन कहाँ कौ राव, कहा बापुरे सुरभि मैं।
नाँहक करि चित-चाव, कत बसंत बरनन करौ॥

भावार्थ: तनिक विचारो तो, कौन कहाँ का राजा है और बेचारे सुगंधित गुणयुक्त वायु में क्या धरा है, नाहक चित्त के उत्साह से व्यर्थ वसंत-वर्णन करते हो।