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छम्मो / हरीशचन्द्र पाण्डे

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यह एक चितकबरी बिल्ली का नाम है

पेट ऊर काली है यह
पेट नीचे सफे़द

छम्मो गुज़रती है
खिले गुलाब के पौधे की बग़ल से
रंग दो से चार हो जाते हैं

ज़मीन का रंग इन सबमें
साड़ी की ज़मीन का काम करता है

एक विशाल नीले
चँदोबे के तले चल रही है छम्मो
एक गेहुआँ आदमी देख रहा है
छम्मो को मटकते जाते

छम्मो का क्या भरोसा
कहाँ चली जाय। कूदते-फाँदते-मटकते
भूमध्य से धु्रवों तक
कहाँ से कह दे, ‘म्याऊँ’

जो जाएगी भूमध्य की ओर
तो काला हो जाएगा पीछा करता गेहुआँ आदमी
और जो सुदूर उत्तर-दक्खिन गयी
गोरा हो जाएगा

छम्मो एक साथ लिये है दोनों रंग
उसे सभ्य कहूँ
या असभ्य?