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छाता / मुनेश्वर ‘शमन’
Kavita Kosh से
कतना बिसवास से
कईला तूँ साथ हमरा
अपन जातरा के सुरुआत में /
आऊ हम।
साथ हो लेली।
घना जंगल / कंटीला झाड़ियन /
पथरीला रास्ता से गुजरइत
तूँ हमर इस्तेमाल कईला
अपन राह के रोड़ा-काँटा / हँटावय खातिर।
छिंदल-बिंधल हमर तन-मन।
मुदा तूँ तो सलामत रहला।
चिलचिलाल गरमी/ घनघोर बरखा में
चट ओढ़ लेला हमरा।
जलल-गलल हमर काया
बाकि सुरछित रहला तूँ।
हर बार अपन पड़ाव तक पहुँचते /
छोड़ देला हमरा कोना में।
कहाँ रहलों तनिकों हमर सुध-वुध।
सायत कभी
समय अइसनो आवे
जब एक्के साथ /अन्हड आवय ज़ोर /
घटा घिरय घोर/गाज सहित बरसय।
तब / अपन जर्जर हालत में हम/
तोहर रच्छा करइ लायक /
नञ रह पइयो।
की रह पइयो|
की होतवऽ तोहर वजूद के ?